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नई शिक्षा नीति क्या
नेशनल एजुकेशन पॉलिसी रू. 21वीं सदी के 20 वे साल में भारत में नई शिक्षा नीति आई है। भारत में सर्वप्रथम 1968 में नई शिक्षा नीति बनाई गई थी उसके बाद 1986 में बनाई गई जिसके बाद नई शिक्षा नीति को 1992 में संशोधित किया गया। लगभग 34 साल बाद 2021 में पुनः नई शिक्षा नीति को लेकर अहम बदलाव किए गए हैं ख् प्ैत्व् , प्रमुख डॉक्टर के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में शिक्षा नीति को लेकर नई समिति का गठन किया गया था और मई 2019 में कस्तूरीरंगन समिति ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति का नया रूप सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया। 
नई शिक्षा नीति क्या हैघ्
नई शिक्षा नीति 2021 के तहत 2030 तक शैक्षिक प्रणाली को निश्चित किया गया है और वर्तमान में चल रही 10 ़ 2 के मॉडल के स्थान पर पाठ्यक्रम में 5 ़ 3 ़ 3 ़ 4 की शैक्षिक प्रणाली के आधार पर पाठ्यक्रम को विभाजित किया जाएगा। नई शिक्षा नीति 2021 के लिए केंद्र तथा राज्य सरकार के निवेश का लक्ष्य भी निर्धारित किया गया है जिसमें केंद्र तथा राज्य सरकार शिक्षा क्षेत्र सहयोग के लिए देश की 6ः जीडीपी के बराबर शिक्षा क्षेत्र में निवेश करेगी।

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National Education Policy 2021 की विशेषताएं
  • नई शिक्षा नीति स्वतंत्र भारत के तीसरी शिक्षा नीति है जिसमें बुनियादी तौर पर बदलाव किए गए हैं।
  • नई शिक्षा नीति के तहत शैक्षिक क्षेत्र को तकनीकी से भी जोड़ा जाएगा जिसमें सभी स्कूलों में ज्यादा से ज्यादा डिजिटल एक्यूमेंट दिए जाएंगे।
  • नई शिक्षा नीति में सभी प्रकार की शैक्षिक विषय वस्तु को प्रमुखता उस क्षेत्र की क्षेत्रीय भाषा में भी ट्रांसलेट किया जाएगा जिससे शैक्षिक क्षेत्र में क्षेत्रीय भाषा को बढ़ावा मिल सके ।
  • छठवीं कक्षा से बच्चों को व्यवसायिक परीक्षण इंटर्नशिप दे दी जाएगी।
  • नई शिक्षा नीति के भीतर अब पढ़ाई में कई प्रकार के अन्य विकल्प बच्चों को दिए जाएंगे। अब दसवीं कक्षा में अन्य विकल्पों को भी रखा जाएगा जिसमें छात्र कोई स्ट्रीम ना चुनकर अपनी इच्छा अनुसार विषयों को चुन सकेगा।
  • नई शिक्षा नीति के अंतर्गत छात्रों को छठवीं कक्षा से ही कोडिंग सिखाई जाएगी।
  • शैक्षिक क्षेत्र में वर्चुअल लैब को भी बनाया जाएगा जिससे शैक्षिक क्षेत्रों की गुणवत्ता को उच्च किया जा सके।
  • नई शिक्षा नीति के तहत वर्षों से चली आ रही 10 + 2 के शैक्षिक पैटर्न को बदलकर 5+3+3+4 के नए शैक्षिक पैटर्न को चुना गया है जिसमें 3 साल की फ्री New Education Policy PDF (NEP) नेशनल एजुकेशन पालिसी 2021 नई शिक्षा नीति | National education policyस्कूली शिक्षा बच्चों को दी जाएगी।
  • नई शिक्षा नीति के भीतर शिक्षा का सार्वभौमीकरण किया जाएगा जिसमें कुछ शैक्षिक क्षेत्रों को शामिल नहीं किया गया है जैसे मेडिकल तथा ला।
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नई शिक्षा नीति के नए फार्मूले के चार चरण

फाउंडेशन स्टेज :- नई शिक्षा नीति केफाउंडेशन स्टेज में 3 से8 सालतक के बच्चों को सम्मिलित किया गया है। जिसमें 3 साल की प्री स्कूलीशिक्षा को सम्मिलित किया गया है जिसके अंतर्गत छात्रों का भाषा कौशल तथा शैक्षिकस्तर का मूल्यांकन किया जाएगा और उसके विकास में ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
प्रीपेटरीस्टेज :- इस स्टेज में 8 से 11 साल के बच्चों कोसम्मिलित किया गया है जिसमें 3 से कक्षा 5 तक के बच्चे होंगे।नई शिक्षा नीति के इस स्टेज में छात्रों का संख्यात्मक कौशल को मजबूत करने परविशेष ध्यान केंद्रित किया जाएगा वहीं सभी बच्चों को क्षेत्रीय भाषा का भी ज्ञानदिया जाएगा।
मिडिलस्टेज :- इस स्टेज के भीतर छठवीं से आठवीं कक्षा तक के बच्चों कोसम्मिलित किया गया है जिसमें छठवीं कक्षा के बच्चों से से ही कोडिंग सिखाना शुरूकी जाएगा । वही सभी बच्चों को व्यवसायिक परीक्षण के साथ-साथ व्यवसाय इंटर्नशिप केअवसर भी प्रदान किए जाएंगे ।
सेकेंडरीस्टेज :  इस स्टेज में आठवीं कक्षा से 12वीं कक्षा तक केछात्रों को सम्मिलित किया गया है। इस स्टेज के भीतर आठवीं से 12वीं कक्षा के शैक्षिकपाठ्यक्रम को भी खत्म करके बहु वैकल्पिक शैक्षिक पाठ्यक्रम को शुरू किया गया है।छात्र किसी निर्धारित स्ट्रीम के भीतर नहीं बल्कि अपनी मनपसंद के अनुसार अपनेविषयों को चुन सकते हैं। नई शिक्षा नीति के अंतर्गत छात्रों को विषयों को चुनने कोलेकर स्वतंत्रता दी गई है , छात्रसाइंस के विषयों के साथ-साथ आर्ट्स या कॉमर्स के विषय को भी एक साथ पढ़ सकते हैं।

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National Education Policy syllabus 2021

नेशनलएजुकेशन पालिसी पाठ्यक्रम में सरकार द्वारा जो जो बदलाव किये गए हैं। उसकी जानकारीलेख में नीचे दी जा रही है। अधिक जानकारी लेख में नीचे दी जा रही है।

  • कक्षा तीसरी से पांचवीं तक के छात्रों को प्रतिदिन 2 घंटे का गृह कार्य दिया जाएगा।
  • कक्षा 6 से 8वीं कक्षा के विद्यार्थियों को 1 घंटे का होम वर्क दिया जाएगा।
  • कक्षा 9 से 12 वीं तक के छात्रों को 2 घंटे का होम वर्क दिया जाएगा।
  • छात्रों का बैग उनके वजन से केवल 10% अधिक होना चाहिए।
  • जो छात्र एलकेजी, यूकेजी में पढ़ते हैं उन्हें कोई होम वर्क नहीं दिया जाएगा।
  • इसके अलावा पहली कक्षा व दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले छात्रों को भी गृह कार्य नहीं दिया जाएगा।
  • जब छात्रों के लिए पुस्तकों का चयन किया जाएगा उसके साथ किताबों के वजन पर भी ध्यान दिया जाएगा।
  • छात्रों के लिए स्कूलों में बाथरूम व पानी की सही सुविधा होनी चाहिए।
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निपुण भारत योजना का उद्देश्य

निपुण भारत योजना का मुख्य उद्देश्यआधारभूत साक्षरता एवं संख्यामक्त के ज्ञान को छात्रों के अंतर्गत विकसित करना है।इस योजना के माध्यम से सन 2026-27 तक तीसरी कक्षा के अंत तक छात्र को पढ़ने, लिखने एवं अंकगणित कोसीखने की क्षमता प्राप्त होगी। यह योजना बच्चों के विकास के लिए बहुत कारगर साबितहोगी। निपुण भारत योजना के माध्यम से अब बच्चे समय से आधारभूत साक्षरता एवंसंख्यामक्त का ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे। जिससे की उनका मानसिक एवं शारीरिक विकासहोगा। NIPUN Bharat का संचालन शिक्षा औरसाक्षरता विभाग द्वारा किया जाएगा। यह योजना स्कूली शिक्षा कार्यक्रम समग्र शिक्षाका एक हिस्सा होगी। इस योजना को नई शिक्षा नीति के अंतर्गत आरंभ किया गया है। निपुणभारत योजना के माध्यम से बच्चे संख्या, माप और आकार केक्षेत्र के तर्क को भी समझ पाएंगे।

निपुण भारत काकार्यान्वयन

सन 2026-27तकनिपुण भारत योजना के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए राज्य स्तर पर अलग-अलग लक्ष्यनिर्धारित किए जाएंगे। इन सभी लक्ष्यों की प्रगति पर नोडल विभाग द्वारा नजर रखीजाएगी। इसके अलावा इस योजना के कार्यान्वयन के लिए समग्र शिक्षा के अंतर्गत राज्य को वित्तीय एवं तकनीकीसहायता भी प्रदान की जाएगी। राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा अपनेलक्ष्य को प्राप्त करने के लिए योजनाएं बनाई जाएंगी। जिससे कि सन 2026-27तकमूलभूत साक्षरता एवं संख्यामक्त का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके। राष्ट्रीय स्तर, राज्य स्तर एवं जिलास्तर पर आईटी आधारित संसाधनों के माध्यम से इस योजना की गतिविधियों की निगरानी कीजाएगी। जिसमें क्षेत्र स्तर पर बच्चों की निगरानी भी शामिल होगी। इसके अलावा इसयोजना के अंतर्गत प्रस्तावित निगरानी ढांचे को दो प्रकार में विभाजित किया गया है।जो कि वार्षिक निगरानी सर्वेक्षण एवं समवर्ती निगरानी है।

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छात्रों के आधारभूत साक्षरता तथा संख्यामकता के सुधार के लिए शैक्षणिक दृष्टिकोण

छात्र केसीखने पर ध्यान:-

हमारे देश में कईछात्र ऐसे हैं जो पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी हैं। ऐसे सभी छात्रों के लिए शिक्षा प्राप्त करना कठिनहोता है। क्योंकि वह घर पर शिक्षा का वातावरण नहीं प्राप्त कर पाते हैं। इसीलिएशिक्षकों को छात्रों पर अतिरिक्त ध्यान देने की आवश्यकता है। शिक्षक द्वारा शिक्षाप्रदान करते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है।

  • लड़के एवं लड़कियों से सम्मान एवं उचित अपेक्षाएं प्रदर्शित करना।
  • लिंगभेद से मुक्त पुस्तके, चित्र, पोस्टर, खिलौने आदि का चयन करना।
  • शिक्षकों द्वारा कक्षा में बात करते समय लिंग पक्षपाती कथनों का प्रयास ना करना।
  • ऐसी कहानी एवं कविताओं का चयन करना जिसमें लड़की एवं लड़कों को सामान्य भूमिकाओं में पेश किया जाए।
  • शिक्षार्थियों को अपनी रुचि का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करना।
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निपुण भारत योजना के भाग
  • परिचय
  • मूलभूत भाषा और साक्षरता को समझना
  • मूलभूत संख्यामकता और गणित कौशल
  • योग्यता आधारित शिक्षा की ओर स्थानांतरण
  • शिक्षा और सीखना: बच्चों की क्षमता और विकास पर ध्यान
  • लर्निंग एसेसमेंट
  • शिक्षण -अधिगम प्रक्रिया: शिक्षक की भूमिका
  • स्कूल की तैयारी
  • राष्ट्रीय मिशन: पहलू एवं दृष्टिकोण
  • मिशन की सामरिक योजना
  • मिशन कार्यान्वयन में विभिन्न हितग्राहीको की भूमिका
  • SCERT और DIET के माध्यम से शैक्षणिक साहित्य
  • दीक्षा/NDEAR: का लाभ उठाना: डिजिटल संसाधनों का भंडार
  • माता पिता एवं सामुदायिक जुड़ाव
  • निगरानी और सूचना प्रौद्योगिकी ढांचा
  • मिशन की स्थिरता
  • अनुसंधान, मूल्यांकन एवं दस्तावेजी करण की आवश्यकता
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बच्चों को पढ़ाने की गतिविधि नियमानुसार
1. बलगीत
2. कहानी पढ़कर सुनाना
3. लिखे हुए अक्षरों से बच्चों को परिचित कराना जैसे - क , ख
4. आवाजों को जोड़कर कराने वाली गतिविधि जेैसे क़ $ म = कम
5. बच्चों से किसी विशय पर घटना/कहानी सुनना और आपस में उनको बातचीत का अवसर देना।
6. लिखी हुयी सामग्री को पढ़कर समझने वाली गतिविधि जैसे बाक्स में से पर्ची उठाकर गतिविधि
7. जोड़ों में पढ़ने वाली गतिविधि जैसे टीम बनाकर एक साथ कविता या वर्णमाला को पढ़ना
8. पढ़नें की कौषल का रिष्ता, पढ़ने की आदत के साथ है।

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बुनियादी गणित कैाशल और एल पी एस की पहुॅच

निरंतर अभ्यासगणित सीखने के लिए सबसे जरूरी हैयदि हम गणित को खेल की तरह लेंगे औरउसके सवालों का हल ढूंढने के लिए प्रयास करेंगेगणित के अध्याय के पीछे केकारण को समझेंगे, और यह क्योंमहत्वपूर्ण है इसके सूत्र कैसे आए अगर हम यह सब जान लेंगे तो गणित हमारे लिए आसान हो जाएगा इनसबके लिए एक ही जरूरी चीज निरंतर अभ्यास।

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गणित की प्रकृति
किन्ही दो या दो से अधिक विषयों की तुलना का आधार पूर्ण विषय की प्रकृति ही है जिसके आधार पर हम उस विषय के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। गणित की प्रकृति को निम्नलिखित बिंदुओं द्वारा भरी बातें समझा जा सकता है।

गणित के ज्ञान का आधार हमारी ज्ञानेंद्रियां हैं।
गणित में अमूर्त प्रत्यय को मूर्त रूप में परिवर्तित किया जाता है साथ ही उसकी व्याख्या भी की जाती है।
गणित में संख्याएंए स्थानए दिशा तथा मापन या माप तौल का ज्ञान प्राप्त किया जाता है।
गणित के अध्ययन के माध्यम से प्रत्येक ज्ञान तथा सूचना स्पष्ट होती है तथा उसका एक संभावित उत्तर निश्चित होता है।
गणित के अधीन से बालकों में आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता का विकास होता है।
गणित की अपनी भाषा है। यहां भाषा से तात्पर्य गणितीय पदोंए गणितीय प्रत्यय सूत्र सिद्धांत तथा संकेतों से है जो विशेष प्रकार के होते हैं तथा गणित की भाषा को जन्म देते हैं।
गणित के ज्ञान का आधार निश्चित होता है जिससे उस पर विश्वास किया जा सकता है।
गणित के माध्यम से विद्यार्थियों में स्वस्थ तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित होता है।
गणित का ज्ञान यथार्थए क्रमबद्धए तार्किक तथा अधिक स्पष्ट होता है जिससे उसे एक बार ग्रहण करके आसानी से भुलाया नहीं जा सकता।
गणित के नियमए सिद्धांत तथा सूत्र सभी स्थानों पर एक समान होते हैं जिससे उसकी सत्यता की जांच किसी भी समय तथा किसी भी स्थान पर की जा सकती है।
गणित के अध्ययन से आगमन तथा निगमन और सामान्य करण की योग्यता विकसित होती है।
गणित में संपूर्ण वातावरण में पाई जाने वाली वस्तुओं के परस्पर संबंध तथा संख्यात्मक निष्कर्ष निकाले जाते हैं जिससे प्रकृति प्रेम भी बढ़ता है।
गणित के विभिन्न नियमों सिद्धांतों सूत्रों आदि ने संदेह की संभावना नहीं रहती है।
गणित की भाषा से परिभाषित उपयुक्त तथा स्पष्ट होती है।
गणित के ज्ञान का उपयोग विज्ञान की विभिन्न शाखाओं जैसे भौतिक विज्ञानए रसायन विज्ञानए जीव विज्ञान तथा अन्य विषय के अध्ययन में किया जाता है।
गणित की सूचनाओं को आधार मानकर संख्यात्मक निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।

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किन साधनों का उपयोग किया जा सकता है?

झाडू कीमींकें, बोतलों के ढक्कन, कपड़े, माचिसकी डिब्बियां, लिफाफे, मीपी-शंख, डोरियां, रबर के छल्ले, ड्राइंगपिने, मोती-मनके, छोटे पत्थर, फीते, बटन, सिक्के, बीज, डिब्बेऔर वर्तन, कपड़े मुखाने की रस्सी, अखबार, पुरानीपत्रिकाएं, कागज़ और पुराने कार्ड, छोटी डगालें, लकड़ीके टुकड़े, गत्ते के पुराने डिब्बे, काली मिट्टी, टीन, झोले, बोतलेंऔर लोग। परन्तु इसमें सबसे आवश्यक और महत्वपूर्ण है, दिमाग।इनके अलावा कई और चीजें हैं जो आपको आसानी से स्कूल और स्थानीय परिवेश से मिलजाएंगी।

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बोतल के ढक्कनों का उपयोग

दर्पण के एकओर स्थित, हरेक बिन्दु का, दर्पण-रेखा के दूसरी ओर, उतनी ही दूरी पर प्रतिबिम्ब बनेगा।
आवश्यक सामानः बोतलके ढक्कन, छोटे दर्पण, कार्ड की पट्टी
गतिविधि
चित्र के अनुसार कार्ड की पट्टी पर बोतल के 5 ढक्कन रखें।
दर्पण को टूटी रेखा पर रखें। उसके दोनों ओर एक-एक छात्र बैठे।एक छात्र दूसरे से पूछे कि उसे क्या दिखाई दे रहा है? आपकी राय में, दूसरेछात्र को क्या दिखाई दे रहा होगा? अबदर्पण-रेखा को सरकाएं। अब आपको क्या दिख रहा है? दूसरेछात्र को क्या दिख रहा होगा?
ढक्कनों की दो कतारें बनाएं या भिन्न रंगों के ढक्कनों को, अलगअलग पैटर्न में सजाकर प्रयोग करके देखें।

विषय - अनुमान
नाप की किन्हीं भी दो इकाइयों की आपस में तुलना की जा सकती है।उदाहरण के लिए मीटर की तुलना सेंटीमीटर, इंच, हाथ के बालिश्त आदि से की जा सकती है।

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विषयः विकास के पैटर्न, अंकगणितीय श्रेणियां और ज्यामितीय श्रेणियां
विकास के पैटर्न में एक क्रम होता है जिसके अनुसारउनमें हर बार एक निश्चित बढ़त होती है।
बीजगणित के द्वारा इस बढ़त का वर्णन किया जा सकताहै।
अंकगणितीय श्रेणियों के हर अंक में समान बढ़त होतीहै।
ज्यामितीय श्रेणियों के हर अंक में पहले कीअपेक्षा कहीं अधिक बढ़त होती है।


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गणित के पोस्टर

पोस्टर छात्रों के लिएजानकारी सीखने का एक सूक्ष्म तरीका है। वे कक्षा की सजावट के रूप में गिने जातेहैं, लेकिनजब सही तरीके से किया जाता है, तो इसमें ऐसीजानकारी होती है जिसे छात्र पहचानना और आत्मसात करना सीखेंगे। 

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फ़्लैशकार्ड

फ्लैशकार्ड युवा छात्रों केलिए त्वरित याद करने का अभ्यास करने और सरल गणित, आकृतियों और बहुतकुछ की पहचान करने से परिचित होने का एक शानदार तरीका है। उन्हें व्यक्तिगत औरसाथी के उपयोग के लिए छोटा बनाया जा सकता है, या छोटे समूह औरकक्षा अभ्यास के लिए पूरे पृष्ठ को लिया जा सकता है।

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कार्यपत्रक

जब गणित की बात आतीहै, तो कार्यपत्रकों को अनुकूलित करनेमें सक्षम होना अक्सर एक ऐसी संभावना होती है जो असंभव या कठिन लगती है। हालांकि, ऐसा करनामहत्वपूर्ण है ताकि विभिन्न गणित अवधारणाओं के माध्यम से काम करते समय छात्रों कोउचित रूप से चुनौती दी जा सके। यह आपको सामग्री को अपने छात्रों की रुचि के अनुसारबेहतर ढंग से संलग्न करने और गणित को पहले से अधिक मज़ेदार बनाने की अनुमति देताहै। उनकी पसंदीदा चीजों के आधार पर उनकी शब्द समस्याएं बनाएं या पात्रों के साथ जोड़ और गुणा का अभ्यास करें!

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वर्गीकरण
वर्गीकरण आसपास के  परिवेश को जानने का एक आधारभूत कौशल है। यह संख्याओं के साथ या उनके बिना भी किया जा सकता है। उदाहरण के लिए कक्षा में बच्चों को लड़के और लड़कियों के समूहों में बांटा जा सकता है , यह वर्गीकरण है। यहां संख्या का कोई संदर्भ नहीं लिया गया है। फिर भी वर्गीकरण किसी भी संख्या संबंधी कार्य की पहली जरूरत है। यदि बच्चे यह जानना चाहते हैं कि कितनी लड़कियां हैं तो उन्हें पहले लड़कियों की पहचान करनी होगी (अर्थात वर्गीकृत करना होगा)। इस प्रकार यदि बच्चे गिनना चाहते हैं तो पहले उन्हें यह जानना होगा कि किसकी गिनती करना है और इस काम हेतु वर्गीकरण उन्हें मदद करता है।
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अनुक्रम बनाना
वस्तुओं को क्रम से जमाने का अर्थ है कि उन्हें किसी नियम के आधार पर रखना। इस प्रकार की जमावट वस्तुओं की आकृति, आकार या रंग आदि के आधार पर की जा सकती है। उदाहरण के लिए नीली और पीली गोटियों को एक नीली , एक पीली , एक नीली, एक पीली . के क्रम से रखा जा सकता है।
दो दिशाओं में क्रम जमाना आता है। अर्थात क्या वह दो दिशाओं में संबंध (उससे बड़ा और उससे 

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पठन कौशल के प्रकार और पठन कौशल का महत्व

लिखित भाषा को पढ़ने की क्रिया को पठन कौशल कहा जाता है, जैसें- पुस्तकों कोपढ़ना, समाचार-पत्रों को पढ़नाआदि। भाषा के संदर्भ में पढ़ने का अर्थ कुछ भिनन होता है। भाव और विचारों को, लिखितभाषा के माध्यम से अभिव्यक्ति को पढ़कर समझना पठन कहा जाता है। लिखने का उद्देश्यहोता है कि भाव और विचारों को हम दूसरों तक पहुंचाना चाहते है। अन्य व्यक्ति जबउसको लिखित भाषा के रूप में पढ़ेगा तब उसके भाव एवं विचारों को समझ लेगा। इसक्रिया को पठन कहते है। 

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पठन कौशल का विकास

 कौशल का संबंध क्रियात्मक पक्ष केविकास से होता है। इसलिए भाषा कौशलों के विकास के लिए अभ्यास तथा प ्रशिक्षण कीआवश्यकता होती है। छात्रों को पढ़ने के लिए अवसर दिए जाये और उन्हें ऐसा साहित्यउपलब्ध कराया जाए जो उनकी रुचि के अनुकूल हो; जैसे छात्र कहानियों में अधिक रुचि लेते है, इसलिए उन्हें शिक्षाप्रद् कहानियाॅपढ़ने का अवसर दिया जाए। पढ़ने का निरन्तर अभ्यास कराया जाए जिससे उनमें पठन की आदतका विकास हो जाए पठन के अभ्यास का कार्य घर एवं विद्यालयों दोनों से आरंभ किया जासकता है। छात्रों की अवस्थानुकूल विभिन्न स्तरों पर उनकी आवश्यकता एवं इच्छाओं केअनुकूल पठन के लिए अवसर दिये जाए।

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पठन कौशल का महत्व

तथ्यों के आधार पर पठन कौशल के महत्व को समझा जा सकता है:

  1. पठन, शिक्षा प्राप्ति में सहायक होता है।
  2. पठन-कौशल ज्ञानोपार्जन का साधन है।
  3. आधुनिक युग विशिष्टताओं का युग है, व्यक्ति जिस भी क्षेत्र में है वह विशिष्टता प्राप्त करना चाहता है।
  4. सामाजिक दृष्टिकोण से भी पठन कौशल अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, कक्षाओं में की जाने वाली बहुत-सी सांस्कृतिक गतिविधियों में पठन कौशल का विशेष महत्व होता है।
  5. शिक्षा की प्रक्रिया का संचालन सभी शिक्षण स्तरों पर वाचन के माध्यम से किया जाता है, बिना वाचन के शिक्षण की प्रक्रिया का संचालन संभव नहीं है।
  6. लिखित भाषा को सीखने हेतु वाचन का विशेष महत्व है। अक्षरों को सीखने के लिए अक्षरों की ध्वनि के उच्चारण की सहायता ली जाती है बिना पठन के भाषा का ज्ञान अधूरा होता है।
  7. पठन कौशल मनोरंजन का एक महत्त्वपूर्ण साधन भी है, किसी भी स्थान पर अपने पठन कौशल का विकास अकेलेपन को दूर करने के लिए तथा समय का सदुपयोग करने के लिए मनुष्य कहानी, पत्रिका इत्यादि पढ़ता है तथा आनंद प्राप्त करने में सक्षम होता है।
  8. सामाजिक, राजनीतिक, साहित्यिक तथा सांस्कृतिक विकास के लिए आलोचनात्मक दृष्टिकोण का विकसित होना आवश्यक है। आलोचनात्मक दृष्टिकोण के विकास के लिए अध्ययन अति आवश्यक है और अध्ययन पठन का ही रूप है।
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पठन कौशल के उद्देश्य

पठन कौशल के प्रमुखउद्देश्य इस प्रकार हैं: 

  1. शब्द, ध्वनियों व उनके सहायता का ज्ञान करवाना जिससे वाचन में शब्दों का उच्चारण शुद्ध रूप में कर सकें। 
  2. आरोह, अवरोह का ऐसा अभ्यास करवाना जिससे वह यथा अवसर भावों के अनुकूल स्वर में पढ़ पाए। 
  3. पठन के माध्यम से शब्दों पर उचित बल दिया जाना चाहिए। 
  4. पढ़कर पठित वस्तु का भाव समझे तथा दूसरों को भी समझाने में सक्षम हो। 
  5. पठन के माध्यम से विरामादि चिह्नों का ज्ञान करवाना। 
  6. पठित वस्तु का भाव ग्रहण करने की क्षमता विकसित करना। 
  7. बच्चों के शब्द भंडार में वृद्धि करवाना। 
  8. स्वाध्याय की प्रवृत्ति का विकास करना। 
  9. वाचन के प्रति रूचि उत्पन्न करना तथा पठन में होने वाली त्रुटियों से अवगत कराकर उनके निवारण की जानकारी देना। 
  10. वाचन में मौलिकता तथा मधुरता का समावेश होना चाहिए। वाचन सम्बन्धी उचित शिष्टाचार के नियमों के प्रयोग का पालन किया जाना चाहिए, जैसे उचित मुद्रा में खड़ा होना आदि। 
  11. वाचन में कृत्रिमता नहीं होनी चाहिए, लिखित सामग्री को उचित भावों तथा विचारों की सार्थकता के साथ प्रस्तुत करना चाहिए।
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पठन कौशल की प्रक्रिया
1. पठन मुद्रा
पठन मुद्रा के अंतर्गत हम विषयवस्तु पढ़ाने से पूर्व योग्यताओं के विकास की बात करते हैं जिससे मानसिक तथा शारीरिक रूप से पढ़ने के लिए तैयार हो जाए। आत्मविश्वास उत्पन्न करना तथा सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करना, उन्हें पढ़ने के लिए उत्साहित करता है।

2. पठन शैली
पठन शैली के अंतर्गत अक्षर एवं शब्दोच्चारण, सस्वरता, बल, विराम, लय, यति-गति प्रवाह आदि आते हैं। पठन शैली के अंतर्गत हम पठन के विभिन्न चरणों की यात्रा करते हैं तथा इन चरणों को हम पठन का औपचारिक पक्ष या यांत्रिक पक्ष भी कह सकते हैं, जो इस प्रकार है:

1. प्रत्याभिज्ञान: प्रत्याभिज्ञान से तात्पर्य सृदश वस्तु को देखकर किसी देखी हुई वस्तु का स्मरण होना है, स्मृति की सहायता से होने वाला ज्ञान या पहचान को भी हम प्रत्याभिज्ञान कहते हैं। लेखक के विचारों को पढ़कर समझना तथा उसका पूर्वगत सामग्री के साथ सम्बन्ध स्थापित करना। वर्णों से बने हुए शब्दों तथा शब्दों से बने हुए वाक्यों को अलग-अलग न देखते हुए उस लेख को सम्पूर्ण रूप से देखना ही प्रत्याभिज्ञान कहलाता है। यह पठन का प्रथम चरण है जो पठन प्रक्रिया में अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

2. अर्थग्रहण: पठन प्रक्रिया का द्वितीय चरण, पढ़ने की क्षमता के बाद आने वाला अर्थग्रहण है। पढ़ने का अर्थ केवल सार्थक ध्वनि के प्रतीक लिपि चिह्नों को पहचानना मात्र नहीं है अपितु पुर्वश्रुत सार्थक ध्वनियों के प्रतीक चिह्नों को पढ़कर उनका संदर्भानुसार अर्थग्रहण करना है। पठन एक सोद्देश्य प्रक्रिया है जैसे-जैसे पाठक शब्दों को पढ़ता है वैसे-वैसे उन शब्दों के निहित अर्थों को ग्रहण करता है, अर्थग्रहण के अंतर्गत शब्दों तथा वाक्यों के अर्थों को समझना, विचारों को क्रमबद्ध रूप से ग्रहण करना, पठन सामग्री के केन्द्रीय भाव को समझना तथा विश्लेषण करना, एवं सामान्यीकरण करना निहित है। 

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मूल्यांकन:
पठन के तृतीय चरण के अंतर्गत पठित सामग्री का मूल्यांकन सम्मिलित है। लेखकअपने विचारों को अपने दृष्टिकोण के माध्यम से पाठक तक पहुँचाने का प्रयास करता है, पाठक उन विचारों का मूल्यांकनकर यह जानने का प्रयास करता है कि उसके अनुसार या समाज की परिस्थितियों के अनुरूपलेखक के विचारों का क्या औचित्य है। मूल्यांकन करने के उपरांत पाठक अपने विचारोंकी सार्थकता को सिद्ध कर प्रतिक्रिया कर सकता है। सृजनात्मक पठन तभी संभव है यदिपाठक पठित सामग्री के प्रति भावात्मक तथा मानसिक प्रतिक्रिया करें। इस प्रकार सेहम यह कह सकते हैं कि पठन प्रक्रिया के अंतर्गत विचारों का मूल्यांकन तथाप्रतिक्रिया अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

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अनुप्रयोग:
पठन प्रक्रिया का चौथा तथा अन्तिम चरण है, अनुप्रयोग जिसका अर्थ पठितसामग्री से ग्रहण किए गए विचारों तथा मूल्यों का अपने जीवन में प्रयोग करना है।अनुप्रयोग से तात्पर्य है कि लेखक के जिन भावों को तथा विचारों को हम सहमति प्रदानकरते हैं, उन्हें हम अपने जीवन मेंआत्मसात करें तथा जीवन के मूल्यों में सम्मिलित करें। हम यह कह सकते हैं कि पठनतभी सार्थक होता है यदि वह हमारे व्यवहार में परिवर्तन लाता है। पठित सामग्री केमाध्यम से हम अच्छे विचारों तथा लेखक द्वारा निर्धारित सुविचारों तथा गुणों कोअपने जीवन में उतारें तभी पठन के उद्देश्य को पूरा किया जा सकता है अन्यथा पठितसामग्री का सार्थक उपयोग असंभव है।

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पठन कौशल के प्रकार
1. सस्वर पठन
स्वर सहित पढ़ते हुए अर्थ ग्रहण करने को सस्वर पठन कहा जाता है। यह पठन की प्रारंभिक अवस्था होती है। वर्णमाला में लिपिबद्ध वर्णों की पहचान सस्वर पठन के द्वारा ही करवाई जाती है। सस्वर पठन भावानुकूल करना चाहिए। इस प्रक्रिया से आत्मविश्वास का विकास होता है। सस्वर पठन के माध्यम से की गई अशुद्धियों की भी जानकारी हो जाती है। सस्वर पठन के माध्यम से आरोह-अवरोह बल, उतान-अनुतान, गति-यति का भी अभ्यास हो जाता है। 

सस्वर पठन के गुण  -
1. शुद्ध उच्चारण स्वर माधुर्य
2. उचित ध्वनि निर्गम प्रभावोत्पादकता
3. उचित लय एवं गति स्वाभाविकता
4. उचित बल विराम अर्थ प्रतीति
5. उचित हाव-भाव स्वर में रसात्मकता
6. उचित वाचन मुद्रा
2. मौन पठन 
मौन पठन के द्वारा हम गहराई से अर्थग्रहण करते हुए चिन्तन-मनन एवं तर्क शक्ति का विकास करते हैं। उस समय हमारा सारा ध्यान पाठ्यवस्तु में निहित विचार पर ही होता है। अत: हम एकाग्रचित होकर उसका विश्लेषण करते हैं, मूल्यांकन करते हैं और उसके प्रति अपनी मानसिक प्रतिक्रिया भी करते रहते हैं। चिन्तन और प्रतिक्रिया से हमारे दृष्टिकोण में स्पष्टता आती है, हमारे अनुभव-जगत तथा विचार-क्षेत्र का विस्तार होता है। अवकाश के क्षणों में मनोरंजक सामग्री को पढ़कर आनंद लेने में मौन पठन बहुत सहायक होता है उपन्यास और नाटक जैसी वृहदाकार रचनाओं को पढ़ते समय शायद ही कोई सस्वर पठन करता होगा। 

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मौन पठन के उद्देश्य
  1. वाचन गति का विकास करना।
  2. पठित सामग्री के केन्द्रीय भाव की समझ विकसित करना।
  3. मूल तथ्यों की जानकारी देना।
  4. पठित सामग्री का निष्कर्ष निकालने की क्षमता विकसित करना।
  5. भाषा एवं भाव सम्बन्धी कठिनाईयों को समझाना।
  6. शब्दों का लक्ष्यार्थ और व्यंग्यार्थ जान लेना।
  7. उपसर्ग, प्रत्यय, सन्धि-विच्छेद द्वारा शब्द का अर्थ बताना।
  8. एकाग्रचित होकर ध्यान केन्द्रित कराना।
  9. अवकाश समय का सदुपयोग होना।
  10.  चिन्तन करने की योग्यता का विकास करना।
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गहन पठन
गहन पठन सस्वर और मौन वाचन कौशल की योग्यता का विकास है जिसके माध्यम से अधिक से अधिक ज्ञानार्जन करता है। इससे अध्ययन में गंभीरता आती है तथा उचित भावों, भाषा शैली तथा सृजनात्मक सौन्दर्य की व्याख्या करता है। गहन अध्ययन में पाठक संपूर्ण अनुच्छेद या संपूर्ण पुस्तक को पढ़कर उसका भाव, उद्देश्य तथा संदेश ग्रहण कर उसे आत्मसात करता है। केवल संपूर्ण विषयवस्तु का संदेश ही ग्रहण नहीं करता अपितु उसका मूल्यांकन भी करता है। इसके लिए पाठक, पठन के साथ-साथ तर्क-वितर्क कर आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाता है तथा एक निश्चित निष्कर्ष निकालता है। 

गहन अध्ययन में भाषा के किसी भी अवयव को छोड़ा नहीं जाता है प्रत्येक अवयव का सूक्ष्मता से अध्ययन किया जाता है।

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गहन पठन के उद्देश्य -

1. भाषा शैली तथा सृजनात्मक सौन्दर्य की व्याख्या करना।
2. विषयवस्तु का भाव तथा उद्देश्य ग्रहण क्षमता का विकास करना।
3. भाषा के प्रत्येक अंग का वर्णन करना।
4. विषयवस्तु की तर्क-वितर्क सहित मूल्यांकन करना।
5. आलोचनात्मक दृष्टिकोण का विकास/समालोचनात्मक दृष्टिकोण का विकास करना।
6. नवविचारधारा निर्माण करने की प्रेरणा प्रदान करना।

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व्यापक पठन
व्यापक पठन, जैसा कि नाम से ही जाना जा सकता है व्यापक से तात्पर्य है विस्तृत एवं संपूर्ण व्यापक कहा जाता है। भाषा सम्बन्धी विद्यार्थियों के पूर्ण विकास हेतु व्यापक पठन का अभ्यास नितांत आवश्यक है। व्यापक पठन के माध्यम से शब्दावली में वृद्धि होती है, ज्ञानार्जन अधिक करने की क्षमता का विकास होता है। 

व्यापक पठन के उद्देश्य -
1. द्रुत पठन क्षमता का विकास करना।
2. विस्तार तथा संश्लेषण की क्षमता विकसित करना।
3. अर्थग्रहण क्षमता का विकास करना।
4. स्वाध्याय की क्षमता विकसित करना।
5. विचारों में सृजनात्मकता तथा मौलिकता का विकास करना।
पठन के आवश्यक कारक
लिखित भाव एवं विचारों को मौखिक या मौन रूप मं पढकर बोधगम्य करने में निम्नांकित कारक होते हैः-
1. पठन में दृश्य इन्द्रीय सामान्य तथा क्रियाशील होना।
2. लिखित भाषा लिपि का ज्ञान होना।
3. लिखित पाठ्य-सामग्री की शब्दावली का बोध एवं शुद्ध उच्चारण का अभ्यास होना।
4. पठन में तत्परता, एकाग्रता एवं रूचि का होना।
5. पठन में लिखित अभिव्यक्ति के साथ उसके अर्थ एवं भाव को समझने की क्षमता होना।
6. वाक्य विज्ञान, रूप विज्ञान एवं अर्थ विज्ञान का बोध होना।

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शिक्षा में सबको शामिल करना सुनिश्चित करने के तीन मुख्य सिद्धांत
  • देखना: प्रभावी शिक्षक चौकस, सूक्ष्म दृश्टि वाले और सवेंदी होते हैं; वे अपने छात्रों के परिवर्तनों को देखते हैं। यदि आप ध्यानपूर्वक देख रहे हैं, तो आप देखेंगे कि किसी छात्र ने कब कोई चीज अच्छी तरह से की है, उसे कब मदद की जरूरत है और वह कैसे दूसरों से संबद्ध होता है। आप अपने छात्रों के परिवर्तनों को भी समझ सकते हैं, जो उनके घर की परिस्थितियों या अन्य समस्याओं में परिवर्तनों को प्रतिबिंबित कर सकते हैं। सबको शामिल करने के लिए आवश्यक है कि आप अपने छात्रों से प्रतिदिन मिलें, और उन छात्रों पर विशेष ध्यान दें जो स्वयं को हाशिये पर महसूस कर सकते हैं या भाग लेने में अक्षम होते हैं।
  • आत्म-सम्मान पर संकेंद्रण: अच्छे नागरिक वे होते हैं जो स्वयं के संबंध में सहज रहते हैं। उनमें आत्म-सम्मान होता है, वे अपनी ताकतों और कमज़ोरियों को जानते हैं, और उनमें पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना अन्य लोगों के साथ सकारात्मक संबंध बनाने की क्षमता होती है। वे स्वयं का सम्मान करते हैं और दूसरों का सम्मान करते हैं। एक अध्यापक के रूप में, आप किसी युवा व्यक्ति के आत्म-सम्मान पर उल्लेखनीय प्रभाव डाल सकते हैं; उस शक्ति को जानें और उसका उपयोग हर छात्र के आत्म-सम्मान को बढ़ाने के लिए करें।
  • लचीलापन: यदि आपकी कक्षा में कोई चीज विशिष्ट छात्रों, समूहों या व्यक्तियों के लिए उपयोगी नहीं है, तो अपनी योजनाओं को बदलने या गतिविधि को रोकने के लिए तैयार रहें। लचीला होना आपको समायोजन करने में सक्षम करेगा ताकि आप सभी छात्रों को अधिक प्रभावी ढंग से शामिल करें।

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FLN Module 11
 

किस स्टेज पर खिलौनों द्वारा सीखने की सबसे अधिक आवश्यकता होती है?

  • फ़ाउंडेशल और प्रीप्रेटरी स्टेज
 
 

बच्चों में छोटे समूहों में शांत खेल को सुनिश्चित करने के लिए कौन सा विचार अच्छा है?

 एक खेल क्षेत्र का सृजन
 

 स्वदशी खिलाने बच्चों को किसके साथ सबद्ध करते है?

 संस्कृति
 

 बुनियादी स्टेज पर खिलौनों की शुरूआत करने का उद्देश्य है-

 कम आयु से ही अनुभवात्मक सीखने को बढ़ावा देना
 

फ़ाउंडेशनल स्टेज पर खेल व गतिविधि आधारित पद्धति को क्रियान्वित करने का आवश्यक घटक क्या है?

 बाल अनुकूल परिवेश
 

निम्नलिखित में से पारंपरिक इमारत खिलौना पहचानें-

 जिगसॉ पज़ल्स
 

निम्नलिखत में से कौन साडी आई वाई आइडिया नहीं है?

 बाज़ार से खिलौना हवाई जहाज खरीदना और इसके साथ
 

बच्चों के लिए खिलौने के चयन के लिए निम्नलिखित में से कौन सा मार्गदर्शक मानदंड होना चाहिए?

 खिलौना बच्चे की आयु के उपयुक्त है।
 

किसने कहा है खेल भाषा और विचार के विकास में सहायक होते हैं।

 लेव वायगोत्सकी
 

 रिंग सेट पज़ल्स किस प्रत्यय को सीखने में सहायता करते हैं?

 क्रमबद्धता
 

गुजरात में सेट ऑफ किचन यूटेन्सिल्स खिलौने के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा नाम लोकप्रिय है?

 रसोई
 

निम्नलिखित में से कौन सा खेल लोकप्रिय पारंपरिक भारतीय खेल नहीं है?

 क्रिकेट
 

कक्षा में बच्चों को अपने लाने की अनुमति होनी चाहिए।

 खिलौने और गेम्स
 

खिलौनों और शैक्षिक खेल सामग्री को नहीं होना चाहिए- विकासात्मक उपयुक्त

 सांस्कृतिक रूप से अप्रासंगिक
 

 खिलौने छोटे बच्चों की किसमें सहायता करते हैं?

 संज्ञानात्मक विकास
 

खिलौनों का इतिहास कितना पुराना है?

 सिंधु घाटी काल
 

 निम्नलिखित में से कौन-सा तकनीकी आधारित खेल हैं?

 वीडियो गेम
 

निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?

 खिलौने बच्चों की स्वयं के बारे में तथा अपने चारों ओर के परिवेश
 

 किचन रसोई खिलौने के संबंध में निम्नलिखत में से कौन-सी बात सही नहीं से है?

रसोई खिलौने आत्मनिरीक्षण में सहायता करते हैं।
 

निम्नलिखित में से कौन-सा सक्रिय शारीरिक खेल नहीं है?

कंप्यूटर गेम
 

बच्चों के लिए खेल सामग्री/ खिलौनों का चयन करते समय निम्नलिखित में से किस बात पर विचार नहीं करना चाहिए?

 बच्चों का आर्थिक स्तर
 

डी आई वाई की फुल फ़ार्म क्या है?

डू- इट योरसेल्फ़
 

किस आयु में बच्चे संरचित तरीके से दूसरों के साथ खेलने की इच्छा का प्रदर्शन करते हैं?

6-8 वर्ष
 

डी- आई- वाई खिलौने बच्चों को किसमें चुनौती नहीं देते?

 आध्यात्मिक कौशल
 

स्वदेशी खिलौने बनते हैं-

 स्थानीय कम लागत वाली सामग्री से
 

 किस आयु वर्ग पर खिलौना आधारित शिक्षण प्रारंभ किया जाना चाहिए?

 2-3 वर्ष
 

निम्नलिखित में से कौन सा गुजरात का प्रसिद्ध स्वदेशी खिलौना है?

 ढिंगली डॉल्स
 

कौन से गतिविधि क्षेत्र में किचन सेट रखा जाना चाहिए?

 नाटकीय क्षेत्र
 

 ढिंगली खिलौनों को ऐसे भी जाना जाता है-

 कॉटन की गुड़ियाँ
 

कैलाइडोस्कोप किसकी समझ विकसित करने के लिए बहुत उपयोगी हैं?

 प्रतिबिंब और अपवर्तन के विज्ञान प्रत्यय
 

कैलाइडोस्कोप किससे बनता है?

 कार्डबोर्ड, काँच के टुकड़े और कुछ अव्यवस्थित चित्र
 

 रिंग सेट पज़ल्स के संबंध में निम्नलिखित में कौन सी बात सही नहीं हैं?

 काँच से बना होता है
 

शैक्षिक सहायक के रूप में खिलौनों के संदर्भ में कौन-सा कथन सही है?

 खिलौनों के साथ खेलना छोटे बच्चों में महत्वपूर्ण कौशल विकसित#
 

 छोटे बच्चों की भाषा और संप्रेषण कौशलों को बढ़ावा देने के लिए खिलौने टेलीफोन और बोलती पुस्तकें - के कुछ उदाहरण हैं

 तकनीकी सहायता प्राप्त खिलौने
 

 तकनीकी सहायता प्राप्त खिलौनों से मदद मिलती है-

 सीखने को आनंददायक बनाने में
 

 छोटे बच्चों के लिए बनाए जाने वाले खिलौना केंद्र में होना चाहिए-

 खिलौने और आयु उपयुक्त हस्तकौशलीय सामग्री
 

 डी- आई वाई क्षेत्र को होना चाहिए-

 अच्छी प्रकार से सामग्री रखी हुई , साफ़ और व्यवस्थित
 

स्वदेशी खिलौने के संदर्भ में कौन-सा कथन सही नहीं है?

 स्वदेशी खिलौने आसानी से उपलब्ध नहीं होते
 

बच्चे वस्तुओं को करना पसंद करते हैं क्योंकि वे स्वभाव से ही
सीखने के लिए उत्सुक और जिज्ञासु होते हैं।

 जोड़ तोड़
 

बुनियादी स्टेज पर एक बाल अनुकूल कक्षा में कौन सी पद्धति का प्रयोग किया जाना चाहिए?

 खेल खिलौने आधारित बाल केंद्रित पद्धति
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रचनात्मकता के लिए निम्नलिखित में से किस उपकरण का उपयोग किया जा सकता है?
  • टक्सपेंट
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प्राथमिक स्तर पर, _ का उपयोग शिक्षकों द्वारा भागीदारी को प्रोत्साहित करने और आनंददायक तरीके से अधिगम को बढ़ावा देने के लिए, किया जा सकता है।
  • डिजिटल गेम
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SWAYAM का पूर्ण रूप है
  • स्टडी वेब्स ऑफ़ एक्टिव-लर्निंग फ़ॉर यंग एस्पायरिंग माइंड्स
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.. को विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के मध्य अपनाया नहीं जा सकता।
  • मुद्रित सामग्री
37
ईसीसीई अधिगम के अनुभवों में प्रौद्योगिकी के कार्यान्वयन की प्रक्रिया को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है। ये हो सकते हैं।
  • समष्टि-स्तर, मध्य-स्तर और सूक्ष्म-स्तर पर
38
किसी शब्द के रिकॉर्ड किए गए उच्चारण की सही उच्चारण से तुलना करने की गतिविधि का अभ्यास कहाँ किया जा सकता है?
  • भाषा प्रयोगशालाएँ
39
पक्षियों, जानवरों और विभिन्न प्राकृतिक ऑडियो आदि की विभिन्न ध्वनियों को सिखाने के लिए उपयोग किया जाने वाला अधिक उपयुक्त संसाधन है।
  • ऑडियो स्रोत
40
NEP 2020, वर्ष तक प्राथमिक विद्यालय में सार्वभौमिक बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता प्राप्त करने की सिफ़ारिश करता है।
  • 2025
41
टक्स मैथ (Tux Math) है
  • खेल
42
TPACK का अर्थ है
  • टेक्नोलॉजी पेडागॉजी एंड कंटेंट नॉलेज
43
यदि कोई स्कूल अपने छात्रों के वास्तविक अध्ययन समय को कम किए बिना दोहरी पाली (dual-shift) प्रणाली अपनाता है तो उसे कहा जाता है।
  • क्षमता वृद्धि
44
ऐसे वातावरण का विश्लेषण करता है जिसमें एक आईसीटी सक्षम शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया संचालित होती है।
  • संदर्भ
45
NEP 2020 के केंद्रीय क्षेत्रों में से एक बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता (एफएलएन) है जो हमेशा से का केंद्र था-
  • पूर्व-प्राथमिक और प्राथमिक शिक्षा
46
शिक्षार्थी के आयाम जिन्हें आईसीटी का उपयोग करने के लिए समझने की आवश्यकता है, वे क्या हैं?
  • जनसांख्यिकीय, संज्ञानात्मक, , सामाजिक, शारीरिक
47
पूर्व प्राथमिक/प्राथमिक स्तर पर निष्पादित सामग्री को मोटे तौर पर ज्ञान के निम्नलिखित आयामों के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है
  • तथ्यात्मक, संकल्पनात्मक प्रक्रियात्मक, मेटाकॉग्निशन
48
Full form of NIPUM
National Initiative for Proficiency in Reading with Understanding and Numeracy
49
CCCE
Early Childhood Care and Education 
50
मिशन प्रेरणा की सुरुवात का कब हुयी 
4 SEPT 2019
51
मिशन प्रेरणा को कब तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है 
मार्च २०२३ 
52
मौखिक भाषा के फायदे 
१- तुरंत समझ में आ जाता है 
२- समय कम लगता है 
३- किसी को समझाना आसान है
४- बच्चे को सबसे पहले इसी भाषा से वार्तालाप किया जा सकता है 
53
भाषा कितने प्रकार की होती है 
मौखिक भाषा, लिखित भाषा और सांकेतिक भाषा
54
NEW EDUCAITON POLICY कब लागु हुयी 
जुलाई 2020
55
NIPUN Bharat Yojana 2022 की शुरुआत की है।
 5 जुलाई 2021
56
NIPUN BHARAT में लक्ष्य कब तक पूरा करना है 
2026 TO 2027
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NIPUN Bharat Mission आधारभूत साक्षरता तथा संख्यामकता के प्रकार

मूलभूत भाषा एवं साक्षरता

  • मौखिक भाषा का विकास
  • धवनियात्मक जागरूकता
  • डिकोडिंग
  • शब्दावली
  • रीडिंग कंप्रीहेंशन
  • पठन प्रवाह
  • प्रिंट के बारे में अवधारणा
  • लेखन
  • कल्चर ऑफ रीडिंग

मूलभूत संख्यामकता और गणित कौशल

  • पूर्व संख्या अवधारणाएं
  • नंबर एंड ऑपरेशन ऑन नंबर
  • गणितीय तकनीकें
  • मापन
  • आकार एवं स्थानिक समाज
  • पैटर्न
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डिकोडिंग
अक्षर या अक्षरों के संयोजन को उनकी ध्वनियों से तेजी से मिलान करके और सिलेबल्स और शब्दों को बनाने वाले पैटर्न को पहचानकर प्रिंट को भाषण में अनुवाद करने की प्रक्रिया को डिकोडिंग कहते हैं।

किसी भाषा में लिखे हुए शब्दों या वाक्यों को ध्वनि प्रतीकों में रूपांतरित करना डिकोडिंग कहलाता है। उदाहरण के तौर अगर हिंदी भाषा में कौतूहल शब्द लिखा हुआ है। तो हो सकता है कि कोई बच्चा इसे ध्वनि प्रतीकों में रूपांतरित करते हुए ज्यों का त्यों बोल दे। पर अगर वह इसका अर्थ नहीं जानता है तो यह केवल डिकोड करना भर होगा।
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 ब्लेंडिंग 
ध्वनियों को आपस में जोड़कर शब्द बनाने वाले प्रक्रिया को रीडिंग रिसर्च की शब्दावली में ब्लेंडिंग कहा जाता है। इस प्रक्रिया को एक उदाहरण से समझा जा सकता है क + ल + म = कलम।
60
अब एक दिन में कितन कालांश बनेगे 
8
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HINDI के कितने कालांश होगें और गडित के कितने कालांश होंगे 
 हिंदी सुबह में ३ और गडित के ३ 
62
एक कालांश कितने मिनट का होगा 
४० मिनट 
63
भासा के सिखने के संसाधन 
कहानी, कविता पोस्टर, कार्यपुस्तक, पाठ्यपुस्तक,